श्रि रतन सिंह शेखावत जी का एक मरु संवाद नामक राजपूत पत्रिका है जो हर दो या तीन महीने मे प्रकाशीत होता है।
अगर आप ईंटरनेट से पढना चाहते हैं तो eMagzine को सब्सक्राईव कर सकते हैं जो की निसूल्क: है।
वेबसाईट का पता: http://www.marusamwad.com/
वैसे ई-पत्रिका को ईंटरनेट से पढने से ज्यादा अच्छा हाथ मे पत्रिका हो तब अच्छा
लगता है। उसका अलग ही अनूभव होता है।
(एक और प्रती है जो की फोटोे लेते समए भूल गया।
ईसमे सभी के लिए कूछ ना कूछ होता ही है जैसे कई लेख नौकरी आदी पर भी है, ईतीहास पर, कूल देवीं, राजाओ आदी पर और सबसे अच्छी बात है की विरगाथा है जिसको पढ कर हमे बल मिलता है। मेरे लिए मनोबल बढाने के लिए तो बहोत कारगर है।
मरुसंवाद से आप राजपूतों के ईतिहास को जान सकते हैं, कई लोग जो अपने देश के ईतिहास को जानना चाहते हैं वो भी ईसे पढ सकते हैं।
मरु संवाद का ईतिहास
मै ईसे 2014 से पढता आ रहा हूं, पहले यह “सिंह गर्जना” के नाम से आता था और अब यह पत्रिका “मरु संवाद” हो गया है।
कैसे लें मारू-संवाद राजपूत पत्रिका को डाक द्वारा?
ईस पत्रिका के कर्ता धर्ता रतन सिंह जी हैं, उनका सईट है http://GyanDarpan.com वहां पर उनको टिप्पडी से परेसान किजीए या फेसबूक पर मारू-संवाद मे टिप्पडी या संदेस भेजें। ईसके लिए कूछ शुल्क: लगेगा और पत्रिका आपके द्वार पर जब जब प्रकाशीत होगा तब तब आ जाएगा।
वैसे मूझे ठिक से नही पता है। जब यह सिंह गर्जना के नाम से प्रकाशीत होता था तब डाक द्वारा आन-लाईन मंगाया जा सकत था लेकीन राजपू्त अपने वादे से पिछे नही हटते ईसलीए श्री रतन सिंह जी ने “सिंह गर्जना” बंद होने के बाद भी ईसको दूसरे नाम से चालू रखा क्यों की बहुत से लोगो ने सब्सक्राईब करा था और उन लोगों के लिए “मरू संवाद” पत्रिका को प्रकाशीत किया। सिंह गर्जना मे और मरू संवाद मे कोई फर्क नही है।
सबको अपना ईतिहास जानना चाहीए, भारत का ईतिहास मूगलों ने खराब कर दिया था और यह भी एक वजह है मरू संवाद राजपूत ईतिहास पत्रिका को पढने के लीए।